Sunday, April 30, 2017

मेहरानगढ़ दुर्ग

  • राजस्थान के प्रमुख दुर्गों में से मेहरानगढ़ दुर्ग भी प्रसिद्ध दुर्ग है।
  • मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण राव जोधा ने 13 मई 1459 से बनवाना शुरू किया था।

मेहरानगढ़ दुर्ग के निर्माण की कहानी:-

  • यह दुर्ग चिड़ियाटूक पहाड़ी पर स्थित हैं। 
  • राव जोधा इस महल को पहले मसूरिया की पहाड़ी पर बनवाना चाह रहा था,लेकिन  वहां पानी की कमी थी।
  • इसलिए बाद में इस दुर्ग को बनवाने के लिए पंचोटिया पर्वत को उपयुक्त समझा।
  • इस पंचोटिया पर्वत पर एक झरना बहता था।
  • इसी झरने के पास एक चिड़िया नाथ नामक तपस्वी रहता था,वह उस पहाड़ी पर तपस्या करता था।
  • इस की कुटिया इसी पहाड़ी पर थी
  • जब तपस्वी चिड़िया नाथ (साधु) या योगी का यह बात पता चली की राजा इस पहाड़ी पर एक बड़ा और विशाल दुर्ग का निर्माण करना चाहते है।और उस तपस्वी को कुटिया हटानी पड़ेगी।
  • लेकिन तपस्वी अपनी कुटिया हटाने और जगह छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ।
  • राजा को यह स्थान बहुत सुंदर लगा ,उन्होंने आज तक इस से सुंदर स्थान नहीं देखा था।
  • राजा ने इसी स्थान पर दुर्ग को बनवाने का कार्य शुरू करवा दिया।
  • यह सब देखकर तपस्वी (साधु) बहुत दुखी हुआ।
  • और वह क्रोधित और दुखी होकर उसने अपनी झोपड़ी उजाड़ दी और जला दी और उस धुणी के अंगारों को अपनी झोली में डालकर चला गया।और जाते-जाते चिड़िया नाथ ने राजा को शाप दिया कि "जिस पानी के कारण मुझे यह स्थान छोड़कर जाना पड़ रहा है,वह पानी तुझे भी नसीब नहीं हो।"
  • कहा जाता है  जोधपुर राज्य में पानी की हमेशा ही रही है।जब दुर्ग बनकर तैयार हुआ तो राव जोधा ने उस तपस्वी चिड़िया नाथ की कुटिया वाली जगह पर एक छोटा सा शिव मंदिर और एक कुण्ड बनवा दिया।
  • राव जोधा को किसी तान्त्रिक ने सलह दी की यदि इस दुर्ग की नींव में किसी जीवित पुरुष को गाढ़ दिया जाये तो दुर्ग सदैंव उसके बनाने वालों के वंशजों के पास रहेगा।तो राजा ने यह बात पूरे राज्य में फैला दी कि "जो इस नींव में जीते जी गढ़ेगा उसके परिवार वालों को राजकीय संरक्षण एवं अपार धन सम्पदा दी जायेगी। 
  • तब राजिया नाम का भांभी (बलाई) इस कार्य के लिए तैयार हुआ।और उसको जिन्दा नींव में चिनवा दिया गया तथा उसके परिवार को एक भूखंड दिया गया जो बाद में राजबाग नाम से जाना जाता है।
  • जिस स्थान पर राजिया को गाढ़ा गया उसके ऊपर खजाना और नक्कार खाने की इमारतें बनवाई गई।
  • राजिया के प्रति आभार प्रदर्शन के लिये राज्य से प्रकाशित होने वाली पुस्तकों में उसका उल्लेख श्रद्धा के साथ किया जाता हैं।

मेहरानगढ़ दुर्ग की प्रमुख स्थापत्य विशेषता:-
  • इस दुर्ग के चारों तरफ लम्बी ऊँची दीवार है यह दीवार 12 से 17 फुट चौड़ी है और 15 से 20 फुट ऊँची दीवार है।
  • इस किले की अधिकतम लम्बाई 1500 फुट और चौड़ाई 750 फुट रखी गई है।
  • यह दुर्ग 400 फुट ऊँची पहाड़ी पर स्थित हैं इस विशाल दुर्ग से कई किलोमीटर दूर तक दिखाई देता है।
  • बरसात के दिनों मे इस दुर्ग का नजारा और भी सुंदर और आकर्षक लगता है।
  • कुण्डली के अनुसार इस दुर्ग का नाम चिन्तामणी था लेकिन मिहिरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध था और मिहिर का मतलब सूर्य है।
  • मिहिरगढ़ का अपभ्रंस  होकर मेहरानगढ़ हो गया।
  • इस दुर्ग की कृति मयूर गुच्छ के जैसी लगती थी इसलिए इसे मयूरध्वज दुर्ग भी कहते है।
  • दुर्ग के अंदर महल पोल (दरवाजे) ,मंदिर,छतरियां, तोपखाना, पुस्तकालय, शस्त्रागार बने हुए हैं।

लोहपोल:-
  • इस पोल का निर्माण मालदेव के समय 1548 ई. मे शुरू हुआ और महाराजा विजयसिंह के समय 1752 ई. में बनकर तैयार हुआ।
  • इस द्वार की दीवारों पर सतियों के हाथ खुदे हुए है।

जयपोल:-
  • यह पोल किले के उत्तरी पूर्व में स्थित है।
  • इस पोल का निर्माण राजा मानसिंह ने किया था।
  • मानसिंह ने इस पोल का निर्माण करने का कारण  जयपुर की सेना पर विजय पाने की याद में किया था।

फतेहपोल:-
  • इस फतेहपोल का निर्माण महाराजा अजीतसिंह ने 1707 ई. में मुगलों से अपनी फतह (विजय) की याद में बनवाया गया था।
  • फतहपोल से महल के अंदर तक जाने के बीच के टेढ़े -मेढ़े रास्ते में 6 द्वार आते है गोपाल पोल, मैदपोल,  अमृतपोल, ध्रुव पोल, लोहा पोल, सूरजपोल नाम के द्वार है।
  • अमृतपोल का निर्माण मालदेव ने करवाया था इसलिए इस द्वार को इमरती पोल भी कहते है।
  • वास्तुकला के हिसाब से मेहरानगढ़ बहुत सुंदर कृति है। इस दुर्ग में बनी ऊंची और सुंदर मंजिल है।
  • दुर्ग के जाली और झरोखे के महीन और आकर्षक काम को देखकर उन कारिगरों की प्रशंसा करने का मन करता है।
  • श्वेत चिकनी दीवार छतों और आंगन के कारण सभी प्रासाद गर्मियों में ठण्डे रहते थे।

मेहरानगढ़ दुर्ग के महल:-
  • इस दुर्ग के अंदर कई महल है जिनके नाम इस प्रकार है:-फुल महल, तखत महल, बिचला महल, खबका महल, रंग महल, जनाना महल, मोती महल, चाकेलाव महल, दौलतखाना आदि।
  • मोती महल का निर्माण सूरसिंह (1595-1619) के समय में हुआ था।
  • फुल महल का निर्माण अभयसिंह ने 1724 ई. में करवाया था। इस महल में खुदाई का काम देखने लायक है।
  • फतह महल का निर्माण अजीत सिंह ने मुगलों को जोधपुर दुर्ग से बाहर करने की खुशी में बनवाया था।

पुस्तक प्रकाश:-
  • इस पुस्तक प्रकाश का निर्माण महाराजा मानसिंह ने 1805 ई. में किया था।
  • इस पुस्तकालय में कई प्रकार की भाषाओं की पुस्तकें है,जैसे:- हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, राजस्थानी भाषा की 10,000 से ज्यादा किताबे पाण्डुलिपियाँ तथा 5000 से ऊपर बहियाँ सुरक्षित है।
  • जिनमें महत्वपूर्ण राजकीय आदेश, राजपरिवार के रीतिरिवाज, एतिहासिक घटनाओं का उल्लेख है। 
दुर्लभ तोपें:-
  • यहां पर अनेक छोटी-बड़ी तोपे है।
  • इन में से कुछ तोपों ने एतिहासिक घटनाओं को जन्म दिया है जैसे की कड़क बिजली, नुसरत, किलकिला, बिच्छू बाण, जमजमा, बगसवाहन, शम्भूबाण, गजनी खाँ, गुब्बार ,धूल घाणी नामक तोपे प्रसिद्ध है।
  • किलकिला तोप अजीतसिंह ने जब बनवाई थी जब वह अहमदाबाद का सूबेदार था। यह कहा जाता हैं कि तोप अजीतसिंह ने विजयराज भण्डारी के माध्यम से अहमदाबाद के सूबेदार सरबुलन्द खाँ को परास्त कर प्राप्त की थी और यह भी कहा जाता हैं की यह तोप अभयसिंह ने सूरत से खरीदी थी।
दुर्ग में स्थित मंदिर:-
  • इस दुर्ग में चामुंडा माता, आनंद घनजी, और मुरली मनोहर के मंदिर स्थित हैं और ये मंदिर प्राचीन मंदिर है इन मंदिरों के दर्शन के लिए लाखों लोग दर्शन करने आते है।
  • चामुंडा देवी प्रतिहार वंश की कुल देवी है,और ये राठौड़ वंश की कुल देवी भी है  राठौड़ वंश के शासक हर मांगलिक कार्य में चामुंडा देवी आराधना करते है।
  • आनंद धन जी और मुरली मनोहर मंदिरों का निर्माण महाराजा अभयसिंह ने करवाया था आनंद घन मंदिर में बिल्लोट प्रस्तर की जो 5 मुर्तियाँ है वे मुर्तियाँ महाराजा सूरसिंह को मुगल शासक अकबर से प्राप्त हुई थी।
  • मुरली मनोहर की मुर्ति राजा गजसिंह ने 4 मन 22 सेर (180 kg.) चांदी की बनवाई और स्थापित की थी।

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