चित्तौड़ दुर्ग:-
- यह दुर्ग अजमेर से 152 कि.मी. दूर दक्षिण में और उदयपुर से 112 कि.मी. दूर स्थित है।
- यह दुर्ग अपने एतिहासिक इतिहास के लिए प्रसिद्ध है।
- इस चित्तौड़गढ़ के दुर्ग को राजस्थान का गौरव माना जाता है।
- इस दुर्ग को गिरीदुर्ग भी कहते है क्योंकि यह अरावली पर्वत श्रृंखला पर स्थित है।
- इस का पूर्व नाम चित्रकूट था।
- चित्तौड़गढ़ के दुर्ग का कोई निश्चित मत नहीं मिला, एक दन्त कथा के आनुसार इस दुर्ग का निर्माण द्वापर युग में पाण्डव महाबली भीम ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया था,लेकिन इस बात का ठोस सबूत नहीं मिले।
- महान इतिहासकारों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण चित्रांगद ने करवाया था इसलिए इस नगर का नाम चित्रकूट पडा़।
- मेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर भी 'चित्रकूट' शब्द अंकित मिला।
- यह महल मौर्य राजा चित्रांगद द्वारा निर्मित है।
- इस दुर्ग के चारों तरफ 11.5 कि.मी का परकोटा बना हुआ है।
- यह महल गंभीरी एवं बेड़च नदियों के संगम पर स्थित है।
- इस किले में दो बड़े मार्ग है।
- पश्चिमी सर्पाकार प्रवेश मार्ग में सात विशाल द्वार है जिनका नाम है:-
- 1.पाँडव पोल।
- 2.भैरों पोल।
- 3.हनुमान पोल।
- 4.गणेश पोल।
- 5.जोड़ला पोल।
- 6.लक्ष्मण पोल।
- 7.राम पोल।
- भैरों पोल और हनुमान पोल के बीच पत्ता व ठाकुर जयमल की छतरियां है।
- रामपोल के अंदर घसते ही एक तरफ सिसोदिया पन्ना स्मारक आता है।
- बापा रावल जिसका दुसरा नाम कालभोज भी है उन्होने यह महल 734 ई. में मौर्य शासक मान मोरी से यह दुर्ग जीता था।
- दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 में चित्तौड़गढ़ को जीतकर अपने बेटे खिज्रखान को दे दिया और फिर इसका नाम बदलकर खिज्राबाद रख दिया।
- इस महल में इतिहास के 3 सबसे प्रसिद्ध साके हुए क्रमशः 1303 ई.,1534 ई., और फिर 1567 ई. में हुआ।
- इस महल में रानी पद्मिनी ने 1303 में और रानी कर्मावती ने 1534 ई. में अनेक विरांगनाओं के साथ जौहर किया।
- इस दुर्ग का इतिहास पुरातत्व, परम्पराएं एवं राजपुतों के महान बलिदान और वीर गोरा-बादल ,कल्ला राठौड़ और जयमल-पत्ता जैसे महान सुरवीरों का बलिदान का नाम भी इस महल से जुड़ा है।
- विजयस्तम्भ:-
- महाराणा कुंभा ने मालवा के सुल्तान महमूद शाह तथा गुजरात के सुल्तान कुतबुद्दीन शाह के संयुक्त आक्रमण पर विजय की याद में 1458-68 के मध्य 9 मंजिल का विजयस्तम्भ का निर्माण करवाया।
- यह विजयस्तम्भ 47 वर्ग फीट आधार पर स्थित है और यह 30 फीट चौड़ा है,और 122 फीट ऊँचा है तथा इस स्तम्भ पर 157 सीढियां है।
- इस स्तम्भ के चारों ओर पौराणिक कथाएं मुर्तियों में अंकित है जो मूर्तिकला का श्रेष्ठ का श्रेष्ठ उदाहरण है।
- तीसरी और आठवीं मंजिल पर "अल्लाह" शब्द लिखा हुआ है जो अन्य धर्मों के आधार का सूचक है।
- 9वीं मंजिल पर हमीर प्रथम से महाराणा कुम्भा तक के वंश का इतिहास चित्रित है।
- कीर्तिस्तंभ:-
- इस कीर्तिस्तम्भ का निर्माण 12वीं शताब्दी में जैन व्यापारी जिना जी द्वारा निर्मित किया गया था।
- यह कीर्तिस्तम्भ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है।
- यह स्तम्भ 35फीट आधार व्यास पर स्थित है,और 75 फीट ऊँचा है।
- इस स्तम्भ के चारों कोनों पर ऋषभदेव की सुंदर मुर्तियाँ है।
- सतबीस देवरी मन्दिर(जैन मंदिर):-
- सतबीस देवरी यह जैन मन्दिर है यह फतह प्रकाश महल के दक्षिण पश्चिम में सड़क पर ही 11वीं शताब्दी में बना था इस मंदिर में 27 देवरिया होने के कारण यह सतबीस देवरी कहलाता है।
- इस मन्दिर के अन्दर की गुम्बजनुमा छत व खम्भों पर की गई खुदाई माउंट आबू के देलवाड़ा जैन मंदिर से मिलती जुलती है।
- यहां अन्य दर्शनीय स्थलों में महाराणा कुंभा के महल, जैन मंदिर,कीर्ति स्तंभ, मीरा मंदिर,जौहर (महासती स्थल),गौमुख कुण्ड,पद्मिनी के महल, काली माँ का मंदिर, भीलमत आदि पर्यटन स्थल है।
- इस दुर्ग में भव्य राजमहल, मन्दिर, कुण्ड दर्शनीय है।